Shaam shayari, वो इक शाम जो गुजरी थी रफाकत में कभी
वो इक शाम जो गुजरी थी रफाकत में कभी
फिर ना आएगी लौट कर इतना तो तय है
झील में खेलती कश्ती और मांझी का जुनूँ
संभल गया तो पानी है जो बहका तो मय है
©meri shayri 2020 sunil sharma, all rights reserved
फिर ना आएगी लौट कर इतना तो तय है
झील में खेलती कश्ती और मांझी का जुनूँ
संभल गया तो पानी है जो बहका तो मय है
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